मंगलवार, 22 मार्च 2011

क्यों हार गए ? : a poem by my student - Niharika

क्यों हार गए चल के दो कदम ?,
मंजिल की दूरी है कम .,
यह माना कि है अनजान डगर ,
तू है एकाकी है लम्बा सफ़र .,
रख मंजिल पर तू अपनी नजर ,
मुश्किल  होगी आसान  एकदम .,
चलना ही हियो जीवन चलता चल ,
आबादी मिले या मिले सघन जंगल .,
जंगल में मंगल मनाता चल ,
मंजिल बढ़ के चूमेगी कदम .,
एवरेस्ट को भी हम छू आये ,
उस चाँद पे भी हमने कदम टिकाये .,
क्यों चल के फिर दो कदम हो घबराये ,
क्या भूल गए अपना दम ख़म?,
एडिसन  भी असफल हुए हजारों बार ,
तभी तो हुआ बल्ब का अविष्कार .,
फिर एक प्रयास से क्यों मचले ,
है राह तो ये आसान एकदम .,
जीवन में सुख दुःख आते हैं ,
दुनिया में फूल हैं कांटे हैं .,
काँटों से भरी है राह अगर ,
आगे है बहारों का मौसम .

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