शुक्रवार, 25 मार्च 2011

a poem by my student- Naseema

गति  प्रबल  पैरो में भरी ,
फिर  क्यों  रहूँ  दर-दर खड़ा .
जब  आज  मेरे  सामने  -
है  -रास्ता  इतना  पड़ा .
जब  तक   मंजिल   पा   सकूँ ,
तब  तक  मुझे    विराम हैं .
चलना   हमारा   काम  है ,
रही  हमारा   नाम हैं .
इस विशद  विश्व-प्रहार में ,
किसको   नहीं बहना  पड़ा
 सुख -सुख   हमारी   ही तरह ,
किसको नहीं  सहना पड़ा ,
फिर  व्यर्थ   क्यों   कहता   फिरूँ
मुझ   पर   विधाता   वाम  हैं
गति  प्रबल  पैरो में भरी ,
फिर  क्यों  रहूँ  दर-दर खड़ा .
जब  आज  मेरे  सामने  -
है  -रास्ता  इतना  पड़ा .
जब  तक   मंजिल   पा   सकूँ ,
तब  तक  मुझे    विराम हैं .
चलना   हमारा   काम  है ,
रही  हमारा   नाम हैं .
इस विशद  विश्व-प्रहार में ,
किसको   नहीं बहना  पड़ा
 सुख -सुख   हमारी   ही तरह ,
किसको नहीं  सहना पड़ा ,
फिर  व्यर्थ   क्यों   कहता   फिरूँ
मुझ   पर   विधाता   वाम  हैं
गति  प्रबल  पैरो में भरी ,
फिर  क्यों  रहूँ  दर-दर खड़ा .
जब  आज  मेरे  सामने  -
है  -रास्ता  इतना  पड़ा .
जब  तक   मंजिल   पा   सकूँ ,
तब  तक  मुझे    विराम हैं .
चलना   हमारा   काम  है ,
रही  हमारा   नाम हैं .
इस विशद  विश्व-प्रहार में ,
किसको   नहीं बहना  पड़ा
 सुख -सुख   हमारी   ही तरह ,
किसको नहीं  सहना पड़ा ,
फिर  व्यर्थ   क्यों   कहता   फिरूँ
मुझ   पर   विधाता   वाम  हैं
चलना  हमारा   काम  हैं ,
राही  हमारा   नाम   हैं \\
मैं   पूर्णता   की  खोज  में ,
दर -दर   भटकता   ही  रहा \
पर  क्यों   निराला   है   मुझे ,
जीवन   इसी  का  नाम   हैं \
राही   हमारा  नाम  हैं  ,
चलना  हमारा   नाम  हैं ,चलना  हमारा  काम   हैं \\

मंगलवार, 22 मार्च 2011

क्यों हार गए ? : a poem by my student - Niharika

क्यों हार गए चल के दो कदम ?,
मंजिल की दूरी है कम .,
यह माना कि है अनजान डगर ,
तू है एकाकी है लम्बा सफ़र .,
रख मंजिल पर तू अपनी नजर ,
मुश्किल  होगी आसान  एकदम .,
चलना ही हियो जीवन चलता चल ,
आबादी मिले या मिले सघन जंगल .,
जंगल में मंगल मनाता चल ,
मंजिल बढ़ के चूमेगी कदम .,
एवरेस्ट को भी हम छू आये ,
उस चाँद पे भी हमने कदम टिकाये .,
क्यों चल के फिर दो कदम हो घबराये ,
क्या भूल गए अपना दम ख़म?,
एडिसन  भी असफल हुए हजारों बार ,
तभी तो हुआ बल्ब का अविष्कार .,
फिर एक प्रयास से क्यों मचले ,
है राह तो ये आसान एकदम .,
जीवन में सुख दुःख आते हैं ,
दुनिया में फूल हैं कांटे हैं .,
काँटों से भरी है राह अगर ,
आगे है बहारों का मौसम .

रविवार, 20 मार्च 2011

मेरा वजूद : a poem by my Student- Akanksha

कौन  हूँ मै
क्या  है मेरा  वजूद
बस मैं एक लड़की हूँ
और रीति रिवाज़ मेरा ताबूत
क्या घर  की चारदीवारी में
रहना है बस मेरा नसीब
या खोल पंख  सपनों  के
उड़  जाऊं और  पाऊँ सुकून
कैसे बताऊँ अपने अरमान
कैसे  दिखाऊँ अपने  ज़ज्बात 
कितना  भी कुछ  करके  दिखाएं 
हमारा  मूल्य  हमेशा  रहता  शून्य.
                                                          

गुरुवार, 17 मार्च 2011

सफ़लता : a poem by my Student - Kusum

जीवन है एक चुनौती ,इसे स्वीकार कीजिये  .
संघर्ष कठिनाइयों से लड़ते हुए ,हर पल कोशिश बार -बार कीजिये .
मत बैठिये असफलता से हारकर ,जीतने के लिए प्रयास कीजिये .
धैर्य में छिपी होती है सफ़लता ,पाने के लिए इंतजार कीजिये .
सच्ची लगन और मेहनत के बल पर ,हर मुश्किलों को पार कीजिये
आगे बढ़ो ,सबसे आगे बढ़ो वक्तव्य से अपने लक्ष्य को साकार कीजिये .
जीवन है एक चुनौती ,इसे स्वीकार कीजिये .