मंगलवार, 18 अक्तूबर 2011

स्पर्श...

ओजस्वी मन, प्रसन्न अंतःकरण...
दो हृदयों का परस्पर प्रत्यर्पण...
शुद्ध स्मृति,शुद्ध मन, शुद्ध आचरण...
भावनाएं बहने लगीं, रोमांचक प्रत्येक क्षण...
प्रेम मुझको समर्पित,मेरा प्रेम को समर्पण...

विचार हैं प्रवाहमयी,व्यवहार में शीतलता...
कल्पनाएँ सत्य हो रहीं,स्वप्नों में भी सजगता...
कष्ट विघ्न हो रहे,सत्य कि ही प्रचुरता...
चित्त है प्रसन्न,पराग सी कोमलता...
आलंबन दो हृदयों को,वट हुई जैसे लता..

पाकर यह “कैसा” स्पर्श...
स्तब्ध रह गया, यूँ ही सहर्ष...
प्रेम का प्रारंभ या उत्कर्ष...
रस में ह्रदय या ह्रदय में रस...
प्रेम में है “कोई”, यही है निष्कर्ष...

प्रतीक्षा का हुआ अभिशून्यन ???
या एकांतवास का पलायन!!!
ह्रदय प्रफुल्लित या पुलकित मन!!!
नव उर्जा का संचार, स्फुरित तन...
प्रेम समीर बह रही, खुला ह्रदय का वातायन...

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें